मध्य प्रदेश की मृदा /Soil of MP

                 मध्य प्रदेश की मृदा  /Soil of  M.P 

मृदा धरती की सबसे ऊपरी परत होती है जिसका निर्माण कई कारको पर निर्भर करता है जैसे किसी चट्टान के टूटने से बने हुए छोटे एवं महीन कणो, खनिज व जैविक पदार्थो, बैक्टीरिया आदि अर्थात  मृदा में केवल खनिज पदार्थो  का समूह ही नहीं अपितु जैव पदार्थ भी सम्मिलित होते हैा 

मध्य प्रदेश में मृदा को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया हैा 

  1.    काली मृदा 
  2.    जलोढ़ मृदा 
  3.    लाल- पीली मृदा 
  4.    लैटेराइट मृदा 
  5.    मिश्रित लाल एवं काली मृदा 
 

👉काली मृदा( Black Soil ) :- लोहे की अधिकता  के कारण  इस मिटटी का रंग काला होता है इस मृदा की प्रकृति क्षारीय होती है क्योकि इसका P. H मान 7.5 -8.6 होता है   

Black Soil, Regur, Tropical Chernozem, Cracked
काली/ रेगुर मृदा 
Black  Soil 

 काली मृदा को रेगुर मृदा , काली कपासी मृदा ,करेल एवं चेरनोजम मृदा  भी कहा जाता है  यह मध्य प्रदेश में मुख्यतः मालवा के पठार ,नर्मदा घाटी ,विंध्यांचल एवं सतपुड़ा घाटियों में पाई जाती है ,काली मृदा का निर्माण दक्कन ट्रैप शैलो के विखंडन से हुआ है इस मिटटी में नाइट्रोजन ,फास्फोरस  एवं जैव पदार्थो की कमी पाई जाती है जबकि चूना ,मैगनीशियम ,एवं लोहा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है काली मृदा ज्वार ,कपास ,गेहूं ,चना ,जौ व् सरसो की खेती के लिए उपयुक्त मानी  जाती है ा 


👉जलोढ़ मृदा(Alluvial Soil) :-जलोढ़ मृदा को दोमट मृदा भी कहते इसका निर्माण हिमालय या प्रायद्वीपीय नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों से हुआ है इस मृदा की प्रकृति उदासीन होती है तथा इसका  P. H मान 7 होता हैा इसमें नाइट्रोजन एवं ह्यूमस  की मात्रा काम होती है तथा चूना ,फास्फोरिक एसिड ,जैव पदार्थो एवं पोटाश की प्रचुरता पाई जाती हैा मध्य प्रदेश में इस मृदा का निर्माण चम्बल एवं सहायक नदियों द्वारा बहाकर  लाए गए कचरो के द्वारा हुआ है इसीलिए इसे कछारी मृदा भी कहा जाता है उर्वरता की दृष्टि से यह मृदा सबसे उपयोगी हैा जलोढ़ मृदा मुख्यतः भिंड ,मुरैना ,ग्वालियर एवं श्योपुर में पाई जाती है यह मृदा गेहूं ,चना ,सारसो ,राई ,जौं आदि फसलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती हैा 

जलोढ़ मृदा क्षेत्र में मृदा अपरदन :-   

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मृदा अपरदन /Soil Erosion 

 मृदा अपरदन का अर्थ है बहरी कारको (वायु ,जल या गुरुत्वीय विस्थापन ) द्वारा मृदा कणो का अपने मूल स्थान से पृथक होकर बह जाना ,मृदा अपरदन को रेंगती हुई मृत्यु भी कहा जाता हैा मध्य प्रदेश चम्बल नदी का अपवाह क्षेत्र अर्थात  भिंड ,मुरैना ,ग्वालियर एवं श्योपुर मृदा अपरदन से सबसे ज्यादा प्रभावित है,इन क्षेत्रो में अवनालिका अपरदन के कारण खोह-खडडो या उत्खात भूमि का निर्माण हुआ हैा   

👉लाल पीली मृदा (Red-Yellow Soil ) :-लाल पीली मृदा का निर्माण प्राचीन रवेदार और रूपांतरित चट्टानों के अपरदन से हुआ है यह मृदा मुख्यतः बुंदेलखंड एवं बघेलखण्ड क्षेत्रो विशेषकर मण्डला ,बालाघाट ,सीधी एवं शहडोल जिलों में पाई जाती है 


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लाल पीली मृदा (Red-Yellow Soil 

इस मृदा में लाल रंग फेरिक आक्साइड के कारण  तथा पीला रंग  आक्साइड के कारण होता है यह मृदा धान की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है ,इसकी प्रकृति अम्लीय होती है इसमें नाइट्रोजन ,फास्फोरस एवं ह्यूमस की कमी होती है यह मृदा प्राय अनुर्वर (बंजर ) भूमि के रूप में पायी जाती हैा  

👉लैटेराइट  मृदा (Laterite  Soil ) :- यह एक चट्टानी मृदा है इसीलिए इसमें  चट्टानों के कण अधिक पाए जाते है इस मृदा को लाल बलुई मृदा तथा स्थानीय स्तर पर भाटा भी कहा जाता हैा 


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यह मृदा अधिक बर्षा वाले क्षेत्रो में पाई जाती है जो बागानी  फसलों (चाय एवं कॉफी ) के लिए उपयुक्त मानी जाती है ,यह मृदा छिंदबाड़ा और बालाघाट जिलों में अधिकांश भू -भाग पर पाई जाती है इस मृदा में आयरन और सिलिका की बहुलता होती है तथा ह्यूमस की मात्रा काम पाई जाती हैा 

👉मिश्रित लाल एवं काली  मृदा (Mixed Red and Black   Soil ) :-

इस मृदा को लाल रेतीली मृदा के नाम से भी जाना जाता है जो की सभी प्रकार की मिट्टियो का मिश्रण है यर्ह मृदा नीस व् ग्रेनाइट चट्टानों के विखंडन से निर्मित है इस मृदा का विस्तार मंडला ,डिंडोरी ,बालाघाट ,रीवा ,सतना ,पन्ना ,छतरपुर ,टीकमगढ़ ,शिवपुरी ,गुना आदि जिलों में है मिश्रित मृदा ज्वार और बाजरा जैसे मोठे अनाजों की खेती के लिए उपयुक्त होती हैा




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